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कविता

अंधे ने पाया सिंहासन

मधुकर अस्थाना


फूटा भाग्य हस्तिनापुर का
अंधे ने पाया सिंहासन।

राजसभा में
जुआ हो रहा
चौसर पर शकुनी की गोटी
इज्जत बची न
इंद्रप्रस्थ की
बाकी तन पर बची लँगोटी
राजतंत्र में नग्न द्रौपदी
हवा हुआ शासन-अनुशासन।

आँखों पर
पट्टियाँ बाँध कर
हुई व्यवस्था गूँगी बहरी
आरक्षण संरक्षण में
अब प्रगति लहर
है ठहरी-ठहरी
मनमानी कर रहा
निरंतर, दुर्योधन के नाम दुशासन।

सड़कों पर उतरा खजुराहो
आँगन में
आतंकी छाया
तिहाड़ियों के
सघन जाल ने
खुशियों को हरबार रुलाया
भ्रष्टाचार, भूख
गहराए पाकर कोरा आश्वासन।

चढ़ी गिरानी आसमान पर
हुआ आदमी
हर दिन बौना
झुंड भेड़ियों का है
जिसमें काँप रहा
घायल मृग छौना
राज हुआ एफ.डी.आई. का
सुनते देश भक्ति का भाषण।


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